भावार्थ:
पूर्व श्लोक में व्यक्त किया है की पदार्थ के सूक्ष्म तत्व अणु में जो क्रिया है, उस क्रिया के करने में जो ज्ञान अणु को चाहिये, वह उसका कहा से प्राप्त है?
प्राणियों में होने वाली क्रिया का कारण अंग है। अंग से होने वाली क्रिया का कारण, एक स्तर से दूसरे स्तर पर जाते जाने पर अणु पर रुकता है। अणु की बुद्धिमता, ज्ञान उसका कहा से प्राप्त है?
भगवान श्री कृष कहते है की सूक्षम से भी सूक्षम ज्ञान, प्रकाशक परमात्मतत्त्व है। परमात्मतत्त्व हर प्रकाश (ज्ञान, बुद्धिमता) का भी प्रकाशक है। उस परमात्मतत्त्व में कभी अज्ञान नहीं आता। वह स्वयं ज्ञानस्वरूप है और उसी से सबको प्रकाश मिलता है। अतः उस परमात्मतत्त्व को ज्ञान अर्थात् ज्ञानस्वरूप कहा गया है। ज्ञान का भी ज्ञान कहा गया है। और यह ज्ञान सब में विध्यमान है।
अतः परमात्मतत्त्व तत्व में मूल तत्व है और उसकी सम्पूर्ण ब्रमांड मे व्याप्त है। और ज्ञान में वह सबका प्रकाशक है और पूर्ण ब्रमांड मे विध्यमान है।
धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, मनुष्य जीवन के चार पुरुषार्थ है। यह चार पुरुषार्थ को करना ही मनुष्य जीवन का उदेश्य है। उद्देश्य इसलिये है क्योंकि इन चार पुरुषार्थ को करने से ही मनुष्य का कल्याण है। धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, का अर्थ क्या है? यह पुरुषार्थ करने से मनुष्य का कल्याण किस प्रकार है? धर्म धर्म का अर्थ है कर्तव्य। श्रीमद […]
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