श्रीमद भगवद गीता : १८

इति क्षेत्रं तथा ज्ञानं ज्ञेयं चोक्तं समासतः।

मद्भक्त एतद्विज्ञाय मद्भावायोपपद्यते ।।१३-१८।।

 

इस प्रकार क्षेत्र, ज्ञान और ज्ञेय को संक्षेप से कहा गया। मेरा भक्त इसको तत्त्व से जान कर मेरे भाव को प्राप्त हो जाता है। ।।१३-१८।।

 

भावार्थ:

अध्याय १३ श्लोक ५ और अध्याय १३ श्लोक ६ में जिसका वर्णन किया गया है, वह क्षेत्र है। अध्याय १३ श्लोक ७ से अध्याय १३ श्लोक ११ तक जिस साधन समुदाय का, वर्णन किया गया है, वह ज्ञान है। और अध्याय १३ श्लोक १२ से अध्याय १३ श्लोक १७ तक जिसका वर्णन किया गया है, वह ज्ञेय है।

जो साधक परमात्मतत्त्व की श्रेष्ठा को समझ कर, ज्ञान प्राप्त कर योग करता है वह अध्यात्म भाव को प्राप्त होता है।

पुनः यहाँ अध्यात्म भाव, समता का भाव है, निर्विकार, निर्मलता का भाव है, परम् आनन्द का भाव है, परमात्मा की प्राप्ति है।

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