भावार्थ:
अतः भगवान श्री कृष्ण कहते है कि जो मनुष्य, प्राणी की मूल प्रकृति और उससे प्राप्त गुणों को और पुरुष (अहंता, चेतन तत्व) के अंतर् को ठीक प्रकार से जनता है, उसको जानने के लिये योग करता है, वह वर्तमान मे प्राप्त सभी कर्तव्यों को करता हुआ भी संसार के बंधनों से नहीं बंधता। कारण की सम्बन्ध रहित होने से नए संस्कार नहीं बनते।
विकार, कार्य, करण, विषय आदि रूपसे जो कुछ भी संसार दीखता है, वह सब प्राणी के मूल प्रकृति और उसके गुणोंका कार्य है, स्वयं का नहीं है। ऐसा यथार्थरूपसे अनुभव कर लेना ही परमात्मतत्त्व का अनुभव करना है।
धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, मनुष्य जीवन के चार पुरुषार्थ है। यह चार पुरुषार्थ को करना ही मनुष्य जीवन का उदेश्य है। उद्देश्य इसलिये है क्योंकि इन चार पुरुषार्थ को करने से ही मनुष्य का कल्याण है। धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, का अर्थ क्या है? यह पुरुषार्थ करने से मनुष्य का कल्याण किस प्रकार है? धर्म धर्म का अर्थ है कर्तव्य। श्रीमद […]
Read MoreTo give feedback write to info@standupbharat.in
Copyright © standupbharat 2024 | Copyright © Bhagavad Geeta – Jan Kalyan Stotr 2024