भावार्थ:
योग विधि का ज्ञान अथवा विचार न करके साधारण मनुष्य अगर जीवन्मुक्त महापुरुष के आज्ञाका पालन और उसके आचरण का अनुसरण करे तो वह मृत्यु के भय से मुक्त हो जाता है। कारण कि महापुरुष के समस्त कार्य संसार कल्याण के लिये होते है और उनका अनुसरण करने से मनुष्य मे समता की प्राप्ति होती है।
अध्याय २ श्लोक ४० मे कहा गया है कि समता प्राप्ति, का प्रयास, एवं स्वल्प समबुद्धि से धर्म का अनुष्ठान हो जाय, तो वह मृत्यु के महान् भयसे रक्षा कर लेता है।
इस श्लोक मे विशेष बात ध्यान देने की है कि अनुसरण तत्त्वज्ञ जीवन्मुक्त महापुरुष का हो। जीवन्मुक्त महापुरुष की स्थिति का वर्णन इसी अध्याय १३ श्लोक २३ मे हुआ है।
धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, मनुष्य जीवन के चार पुरुषार्थ है। यह चार पुरुषार्थ को करना ही मनुष्य जीवन का उदेश्य है। उद्देश्य इसलिये है क्योंकि इन चार पुरुषार्थ को करने से ही मनुष्य का कल्याण है। धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, का अर्थ क्या है? यह पुरुषार्थ करने से मनुष्य का कल्याण किस प्रकार है? धर्म धर्म का अर्थ है कर्तव्य। श्रीमद […]
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