श्रीमद भगवद गीता : २५

अन्ये त्वेवमजानन्तः श्रुत्वाऽन्येभ्य उपासते।

तेऽपि चातितरन्त्येव मृत्युं श्रुतिपरायणाः ।।१३-२५।।

 

दूसरे मनुष्य इस प्रकार (ध्यानयोग, सांख्ययोग, कर्मयोग, आदि साधनोंको) नहीं जानते, केवल (जीवन्मुक्त महापुरुषोंसे) सुनकर उपासना करते हैं, ऐसे वे सुननेके परायण मनुष्य भी मृत्युको तर जाते हैं। ।।१३-२५।।

 

भावार्थ:

योग विधि का ज्ञान अथवा विचार न करके साधारण मनुष्य अगर जीवन्मुक्त महापुरुष के आज्ञाका पालन और उसके आचरण का अनुसरण करे तो वह मृत्यु के भय से मुक्त हो जाता है। कारण कि महापुरुष के समस्त कार्य संसार कल्याण के लिये होते है और उनका अनुसरण करने से मनुष्य मे समता की प्राप्ति होती है।

अध्याय २ श्लोक ४० मे कहा गया है कि समता प्राप्ति, का प्रयास, एवं स्वल्प समबुद्धि से धर्म का अनुष्ठान हो जाय, तो वह मृत्यु के महान् भयसे रक्षा कर लेता है।

इस श्लोक मे विशेष बात ध्यान देने की है कि अनुसरण तत्त्वज्ञ जीवन्मुक्त महापुरुष का हो। जीवन्मुक्त महापुरुष की स्थिति का वर्णन इसी अध्याय १३ श्लोक २३ मे हुआ है।

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