श्रीमद भगवद गीता : ३३

यथा प्रकाशयत्येकः कृत्स्नं लोकमिमं रविः।

क्षेत्रं क्षेत्री तथा कृत्स्नं प्रकाशयति भारत ।।१३-३३।।

 

हे भारत! जिस प्रकार एक ही सूर्य इस सम्पूर्ण लोक को प्रकाशित करता है, उसी प्रकार एक ही क्षेत्री (क्षेत्रज्ञ) सम्पूर्ण क्षेत्र को प्रकाशित करता है। ।।१३-३३।।

 

भावार्थ:

सूर्य का दृष्टान्त देते हुए भगवान श्री कृष्ण कहते है कि जिस प्रकार सूर्य ही सम्पूर्ण संसार को प्रकाशित करता है। अर्थात सूर्य के प्रकाश के अन्तर्गत ही संसार की सब क्रियाएँ होती है, परन्तु सूर्य को कर्तृत्व भाव नहीं होता। उसी प्रकार क्षेत्रज्ञ (पुरुष, आत्मा) के प्रकाश में ही क्षेत्र के सब कार्य होते है, परन्तु क्षेत्रज्ञ को कर्तृत्व भाव नहीं होता।

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