भावार्थ:
‘अमानित्व’ – वर्ण, योग्यता, विद्या, गुण आदि को लेकर अपने में श्रेष्ठता का भाव ना होना अमानित्व है।
‘अदम्भित्व’ – अपने में श्रेष्ठता का भाव का होना और उसको प्रकट करना दम्भ है। श्रेष्ठता का प्रदर्शन न करने का स्वभाव अदम्भित्व है।
‘अहिंसा‘ – शरीर, मन, वाणी, भाव आदि के द्वारा किसी का भी किसी प्रकार से अनिष्ट न करने को ‘अहिंसा’ कहते हैं।
‘क्षान्ति’ – अपने प्रति अपराध देखकर भी, अपराध करने वाले को कभी किसी प्रकारसे किञ्चिन्मात्र भी दण्ड न मिले क्षमा है। अपने में सामर्थ्य होने पर स्वयं दण्ड न देना क्षमा है और सामर्थ्य न होने पर किसी दूसरे के द्वारा दण्ड दिलवाने का भाव न रखना ही क्षान्ति है।
‘आर्जवम्’ – साधक के शरीर, मन और वाणी में सरलता का होना आर्जवम् है। शरीर की चाल-ढाल से, रहन-सहन से, वस्त्रो से अहंकार न दिखना शरीरकी सरलता है। छल, कपट, ईर्ष्या, द्वेष आदिका न होना तथा निष्कपटता, सौम्यता, हितैषिता, दया आदिका होना मनकी सरलता है। व्यंग्य, निन्दा, आदि न करना, चुभनेवाले एवं अपमानजनक वचन न बोलना तथा प्रिय और हितकारक वचन बोलना, यह वाणी की सरलता है।
‘शौचम्’- अन्तःकरण में विषमता का न होना अन्तःकरण की शुद्धता है।
स्थैर्यम् – जो विचार कर लिया, लक्ष्य बना लिया, उससे विचलित न होना स्थैर्य – बुद्धि की स्थिरता है।
धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, मनुष्य जीवन के चार पुरुषार्थ है। यह चार पुरुषार्थ को करना ही मनुष्य जीवन का उदेश्य है। उद्देश्य इसलिये है क्योंकि इन चार पुरुषार्थ को करने से ही मनुष्य का कल्याण है। धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, का अर्थ क्या है? यह पुरुषार्थ करने से मनुष्य का कल्याण किस प्रकार है? धर्म धर्म का अर्थ है कर्तव्य। श्रीमद […]
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