भावार्थ:
प्रकृति पदार्थ, परिस्थिति, क्रिया के प्रति आसक्ति (प्रियता) के साथ सक्ति (संग) का त्याग करना बहुत आवश्यक है।
पुत्र, स्त्री, घर, धन, आदि के साथ माना हुआ जो घनिष्ठ ममता है, उसको मोह कहते है, जिसके कारण शरीरपर भी असर पड़ता है। जैसे, पुत्रके साथ माताकी एकात्मता रहनेके कारण जब पुत्र बीमार हो जाता है, तब माताका शरीर कमजोर हो जाता है। ऐसे ही पुत्रके, स्त्रीके मर जानेपर मनुष्य कहता है कि मैं मर गया, धनके चले जानेपर कहता है कि मैं मारा गया, आदि। ऐसी एकात्मतासे रहित होनेके लिये यहाँ अनभिष्वङ्गः पद आया है।
मनके अनुकूल वस्तु, व्यक्ति, परिस्थिति, आदि के प्राप्त होनेपर चित्तमें राग, हर्ष, सुख आदि विकार न हो और मनके प्रतिकूल वस्तु, व्यक्ति, परिस्थिति आदिके प्राप्त होनेपर चित्तमें द्वेष, शोक, दुःख, उद्वेग आदि विकार न हो। तात्पर्य है कि अनुकूलप्रतिकूल परिस्थितियोंके प्राप्त होनेपर चित्तमें निरन्तर समता बनी रहे।
धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, मनुष्य जीवन के चार पुरुषार्थ है। यह चार पुरुषार्थ को करना ही मनुष्य जीवन का उदेश्य है। उद्देश्य इसलिये है क्योंकि इन चार पुरुषार्थ को करने से ही मनुष्य का कल्याण है। धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, का अर्थ क्या है? यह पुरुषार्थ करने से मनुष्य का कल्याण किस प्रकार है? धर्म धर्म का अर्थ है कर्तव्य। श्रीमद […]
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