श्रीमद भगवद गीता : १३

गामाविश्य च भूतानि धारयाम्यहमोजसा।

पुष्णामि चौषधीः सर्वाः सोमो भूत्वा रसात्मकः ।।१५-१३।।

 

 

मैं ही पृथ्वीमें प्रविष्ट होकर अपनी शक्ति से समस्त प्राणियोंको धारण करता हूँ; और मैं ही रसमय चन्द्रमाके रूपमें समस्त ओषधियों-(वनस्पतियों-) को पुष्ट करता हूँ। ।।१५-१३।।

 

भावार्थ:

पृथ्वी सम्पूर्ण स्थावरजङ्गम प्राणियों को धारण करती है और उसी से उनका भरण-पोषण होता है। पृथ्वी को जो शक्ति प्रदान है, उस शक्ति का मूल स्रोत्र क्या है?

भगवान श्री कृष्ण कहते है कि वह मूल स्रोत्र परमात्मतत्त्व है। पृथ्वी पर उत्त्पन होने वाली समस्त ओषधियों – वनस्पतियों की उत्त्पति में चन्द्रमा का तेज कारण है और उस तेज के होने का कारण परमात्मतत्त्व है।

चन्द्रमा की पोषण शक्ति से सम्पूर्ण वनस्पतियाँ पुष्ट होती है। चन्द्रमा शुक्लपक्षमें पोषक और कृष्णपक्षमें शोषक होता है। शुक्लपक्षमें रसमय चन्द्रमाकी मधुर किरणोंसे अमृतवर्षा होनेके कारण ही लतावृक्षादि पुष्ट होते हैं और फलतेफूलते हैं। माताके उदरमें स्थित शिशु भी शुक्लपक्षमें वृद्धिको प्राप्त होता है। चन्द्रमा के द्वारा पुष्ट हुए अन्नका भोजन करनेसे ही मनुष्य, पशु, पक्षी आदि समस्त प्राणी पुष्टि को प्राप्त होते हैं। ओषधियों, वनस्पतियों में शरीर को पुष्ट करनेकी जो शक्ति है, वह चन्द्रमासे आती है। चन्द्रमा की यह पोषणशक्ति का कारण परमात्मतत्त्व है।

 

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