भावार्थ:
जो मनुष्य संशय रहित होकर पुरुषोत्तम श्रीकृष्ण के आचरण, गुणों को यथावत देखता और समझता है वह सर्वज्ञ है। अर्थात वह पूर्ण रूप से ज्ञान से युक्त है।
जो भगवान श्रीकृष्ण को मनुष्य रूप में पुरुषोत्तम जान लेता है और इस विषय में जिसकी बुद्धि कोई भ्रम या संशय नहीं रहता, उस मनुष्य के लिये जानने योग्य कोई तत्त्व शेष नहीं रहता।
ऐसा सर्वज्ञ पुरुषोत्तम श्रीकृष्ण के आचरण का ही अनुसरण करता है। अनुसरण करते हुए मनुष्य, संसार से अपने माने हुए सम्बन्ध का त्याग करता है, अहंकार का त्याग करता है और कर्तव्य का पालन करता है।
इस श्लोक में भजन करने का अर्थ अनुसरण करने से है।
धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, मनुष्य जीवन के चार पुरुषार्थ है। यह चार पुरुषार्थ को करना ही मनुष्य जीवन का उदेश्य है। उद्देश्य इसलिये है क्योंकि इन चार पुरुषार्थ को करने से ही मनुष्य का कल्याण है। धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, का अर्थ क्या है? यह पुरुषार्थ करने से मनुष्य का कल्याण किस प्रकार है? धर्म धर्म का अर्थ है कर्तव्य। श्रीमद […]
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