भावार्थ:
भगवान् श्रीकृष्ण कहते हैं कि इस वृक्ष की शाखाएं ऊपर और नीचे फैली हुईं हैं। इनसे तात्पर्य जड़-चेतन प्राणी इत्यादि योनियों से है। मनुष्य के व्यक्तिगत तथा जगत् का कल्याण ही मनुष्य की उन्नति है। किन्तु मनुष्य का जीवन एक पशु जीवन के निम्न स्तर की ओर रहता है। अध और ऊर्ध्व इन दो शब्दों से इन्हीं दो दिशाओं अथवा प्रवृत्तियों की ओर निर्देश किया गया है। गुणों से प्रवृद्ध हुई जीवों की ऊर्ध्व या अधोगामी प्रवृत्तियों का धारण पोषण प्रकृति के सत्त्व, रज और तम, इन तीन गुणों के द्वारा किया जाता है। किसी भी वृक्ष की शाखाओं पर हम अंकुर या कोपलें देख सकते हैं जहाँ से अवसर पाकर नई-नई शाखाएं फूटकर निकलती हैं। प्रस्तुत रूपक में इन्द्रियों के शब्दस्पर्शादि विषयों को प्रवाल अर्थात् अंकुर कहा गया है। यह सुविदित तथ्य है कि विषयों की उपस्थिति में हम अपने उच्च आदर्शों को विस्मृत कर विषयाभिमुख हो जाते हैं। तत्पश्चात् उन भोगों की पूर्ति के लिये उन्मत्त होकर नये-नये कर्म करते हैं।
इस श्लोक में भगवान् श्रीकृष्ण कहते हैं कि इस वृक्ष की गौण जड़ें नीचे फैली हुई हैं। परमात्मा तो इस संसार वृक्ष का अधिष्ठान होने से इसका मुख्य मूल है किन्तु इसकी अन्य जड़े भी हैं। जो इस वृक्ष का अस्तित्व बनाये रखती हैं। मनुष्य देह में यह जीव असंख्य प्रकार के कर्म और कर्मफल का भोग करता है। जिसके फलस्वरूप उसके मन में नये संस्कार या वासनाएं अंकित होती जाती हैं। ये वासनाएं ही अन्य जड़ें हैं, जो मनुष्य को अपनी अभिव्यक्ति के लिये कर्मों में प्रेरित करती रहती हैं। शुभ और अशुभ कर्मों का कारण भी ये वासनाएं ही हैं। जैसा कि लोक में हम देखते हैं, वृक्ष की ये अन्य जड़ें ऊपर से नीचे पृथ्वी में प्रवेश कर वृक्ष को दृढ़ता से स्थिर कर देती हैं। वैसे ही ये संस्कार शुभाशुभ कर्म और कर्मफल को उत्पन्न कर मनुष्य को इस लोक के राग और द्वेष, लाभ और हानि, आय और व्यय आदि प्रवृत्तियों के साथ बाँध देते हैं।
धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, मनुष्य जीवन के चार पुरुषार्थ है। यह चार पुरुषार्थ को करना ही मनुष्य जीवन का उदेश्य है। उद्देश्य इसलिये है क्योंकि इन चार पुरुषार्थ को करने से ही मनुष्य का कल्याण है। धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, का अर्थ क्या है? यह पुरुषार्थ करने से मनुष्य का कल्याण किस प्रकार है? धर्म धर्म का अर्थ है कर्तव्य। श्रीमद […]
Read MoreTo give feedback write to info@standupbharat.in
Copyright © standupbharat 2024 | Copyright © Bhagavad Geeta – Jan Kalyan Stotr 2024