श्रीमद भगवद गीता : ०६

न तद्भासयते सूर्यो न शशाङ्को न पावकः।

यद्गत्वा न निवर्तन्ते तद्धाम परमं मम ।।१५-६।।

 

 

उस-(परमपद-) को न सूर्य, न चन्द्र और न अग्नि ही प्रकाशित कर सकती है; और जिसको प्राप्त होकर जीव पुनः लौटकर (सांसारिक बन्धन) नहीं आते, वही मेरा परमधाम है। ।।१५-६।।

 

भावार्थ:

दृश्य जगत में सूर्य के समान तेजस्वी, प्रकाश स्वरूप कोई चीज नहीं है। वह सूर्य भी उस परमधामको प्रकाशित करनेमें असमर्थ है फिर सूर्यसे प्रकाशित होनेवाले चन्द्र और अग्नि उसे प्रकाशित कर ही कैसे सकते हैं। परमात्मतत्त्व चेतन है और सूर्य, चन्द्र तथा अग्नि जड (प्राकृत) हैं। ये सूर्य, चन्द्र और अग्नि क्रमशः नेत्र, मन और वाणी को प्रकाशित करते हैं। ये तीनों (नेत्र, मन और वाणी) भी जड ही हैं। इसलिये नेत्रोंसे उस परमात्मतत्त्वको देखा नहीं जा सकता। मनसे उसका चिन्तन नहीं किया जा सकता और वाणीसे उसका वर्णन नहीं किया जा सकता।

जीव परमात्माका अंश है। वह जबतक अपने अंशी परमात्माको प्राप्त नहीं कर लेता, तब तक उसका संसार से बन्धन मिट नहीं सकता। अतः परमात्मा को प्राप्त कर साधक संसार के बन्धन से छूट जाता है और पुनः नहीं बांधता।

 

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