श्रीमद भगवद गीता : ०९

श्रोत्रं चक्षुः स्पर्शनं च रसनं घ्राणमेव च।

अधिष्ठाय मनश्चायं विषयानुपसेवते ।।१५-९।।

 

 

मनुष्य मनका आश्रय लेकर श्रोत्र, नेत्र, त्वचा, रसना और घ्राण – इन पाँचों इन्द्रियोंके द्वारा विषयोंका सेवन करता है। ।।१५-९।।

 

भावार्थ:

मनुष्य मन का आश्रय लेकर ही इन्द्रियों के द्वारा विषयों का सेवन करता है। मनुष्य पूर्व इंगित संस्कार के द्वारा इन्द्रियों के विषयों में राग-द्वेष करता है। यह राग-द्वेष ही विषयों का सेवन है।

विषय सेवन करने से परिणाममें विषयों में राग-आसक्ति बढ़ती है, जो सम्पूर्ण दुःखों का कारण है।

 

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