भावार्थ:
अध्याय ४ श्लोक २० में भगवान श्रीकृष्ण कहते है कि मनुष्य जब कर्म करता है और कर्मफल से सम्बन्ध नहीं मानता और कर्मफल का आश्रय नहीं लेता, तब उसके कर्म अकर्म हो जाते है। अर्थात वह कर्म (कार्य) बाँधने वाले नहीं होते। भगवान पुनः इस श्लोक में कर्मफल का आश्रय न लेकर कर्तव्य कर्म करने पर बल देते हैं। साथ ही कहते है कि कर्मफल से सम्बन्ध नहीं मानना और कर्मफल पर आश्रित नहीं होना सन्यास है – योग है।
मनुष्य जब कोई कार्य करता है, तब उस कार्य का फल मिलना निश्चित हैं। कार्य के फल स्वरूप प्रकृति से प्राप्त होती है – उत्पति-विनाशशील वस्तु, व्यक्ति, घटना, परिस्थिति आदि। प्रकृति से प्राप्त फल के आश्रित नहीं होने का अर्थ है, उसमें अहंता या ममता न करना, राग-द्वेष न करना, और अपने जीवन को उनके आश्रित न मानना।
कर्मफल का आश्रय न लेने से फल का भोग नहीं होगा और भोग न होने से अपने लिये नई कामना उत्तपन्न नहीं होगी। साधक जब दूसरों के हित के लिये कार्य करता है, तब उस कार्य का फल भी दूसरों के लिये होता है। स्वयं के लिये फल न मानना से, फल का भोग लेना स्वतः ही मिट जाता है। दूसरों के हित के लिये कार्य करने से स्वयं की कामना पूर्ति के लिये कार्य करने का वेग भी मिट जाता है।
यह शरीर भी हमे प्रकृति से फल स्वरूप में ही मिला हैं। इसलिए साधक को अपने शरीर का भी आश्रय नहीं लेना चाहिये। शरीर का आश्रय न लेने का अर्थ हैं – शरीर को अपना और अपने लिये न मानते हुए, उस शरीर को दूसरों के हितके लिये कार्य में लगा देना।
संसार से मिले पर्दार्थ और शरीर को अपनी या अपने लिये न मान कर संसार की सेवा में लगा देना ही संन्यास हैं।
भगवान श्रीकृष्ण स्पष्ट करते है कि केवल संसारिक पदार्थों का त्याग करना, या वन में जाकर शरीर से कोई क्रिया न करना, सन्यास नहीं है – योग नहीं है।
अतः जो मनुष्य कर्तव्य-कर्मों को करते हुए कर्मों की सिद्धि-असिद्धि में सम रहता हैं, कर्मफल की प्राप्ति-अप्राप्तिमें सम रहता हैं, कर्मफल स्वरूप अनुकूल-प्रतिकुल परिस्थिति में सम रहता है और कर्मफल का आश्रय नहीं लेता वह ही ‘योगी’ हैं।
धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, मनुष्य जीवन के चार पुरुषार्थ है। यह चार पुरुषार्थ को करना ही मनुष्य जीवन का उदेश्य है। उद्देश्य इसलिये है क्योंकि इन चार पुरुषार्थ को करने से ही मनुष्य का कल्याण है। धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, का अर्थ क्या है? यह पुरुषार्थ करने से मनुष्य का कल्याण किस प्रकार है? धर्म धर्म का अर्थ है कर्तव्य। श्रीमद […]
Read MoreTo give feedback write to info@standupbharat.in
Copyright © standupbharat 2024 | Copyright © Bhagavad Geeta – Jan Kalyan Stotr 2024