भावार्थ:
इस प्रकार प्रतिदिन नियमित रूप से एकान्त समय में ध्यान योग का अभ्यास करना चाहिये। और साधक, मनको संसार से हटाकर परमात्मा में लगाते रहना चाहिये। परमात्मा का चिन्तन एकान्त समय एवं व्यवहार समय में निरन्तर बना रहना चाहिये।
यहां व्यवहार काल का अर्थ निर्वाह के लिये होने वाले कार्य और मनुष्य धर्म के हेतु होने वाले कार्य से है।
इस प्रकार मन को संयमित करने के लिये ध्यान योग का अभ्यास करने से साधक का अन्तःकरण शुद्ध हो जाता है। उसका संसार से अपना माने हुये सम्बन्ध से विच्छेद हो जाता है।
मनुष्य का जब तक संसार और शरीर से सम्बन्ध रहता है, तब तक उसको मृत्यु का भय रहता है। अन्तःकरण की शुद्धि होने पर साधक, मृत्यु के भय से मुक्त हो जाता है। मृत्यु के भय से मुक्त होना ही निर्वाण की प्राप्ति है। और वह अपने स्वरूप में स्थित हो कर परम शान्ति को प्राप्त होता है।
धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, मनुष्य जीवन के चार पुरुषार्थ है। यह चार पुरुषार्थ को करना ही मनुष्य जीवन का उदेश्य है। उद्देश्य इसलिये है क्योंकि इन चार पुरुषार्थ को करने से ही मनुष्य का कल्याण है। धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, का अर्थ क्या है? यह पुरुषार्थ करने से मनुष्य का कल्याण किस प्रकार है? धर्म धर्म का अर्थ है कर्तव्य। श्रीमद […]
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