श्रीमद भगवद गीता : ०८

तमस्त्वज्ञानजं विद्धि मोहनं सर्वदेहिनाम्।

प्रमादालस्यनिद्राभिस्तन्निबध्नाति भारत ।।१४-८।।

 

 

हे भरतवंशी अर्जुन! सम्पूर्ण देहधारियों को मोहित करने वाले तमोगुण को तुम अज्ञान से उत्पन्न होनेवाला समझो। वह प्रमाद, आलस्य और निद्राके द्वारा देहधारियोंको बाँधता है। ।।१४-८।।

 

भावार्थ:

मनुष्य का स्वयं के शरीर के प्रति जो मोह, ममता, आसक्ति है, तमोगुण उसका प्रकाशक है। तमोगुण के कारण ही मनुष्य शरीर को कष्ट और पीड़ा से बचाकर रखना चाहता है। आलस्य और निंद्रा का कारण तमोगुण है। शरीर (शरीर, मन और बुद्धि) के प्रति आसक्ति, आलस्य और निंद्रा से मोहित हुआ मनुष्य का विवेक ढक जाता है।

तमोगुण मनुष्य को शरीर से बाँधता है।

 

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