श्रीमद भगवद गीता : १०

रजस्तमश्चाभिभूय सत्त्वं भवति भारत।

रजः सत्त्वं तमश्चैव तमः सत्त्वं रजस्तथा ।।१४-१०।।

 

 

हे भारत! कभी रज और तम को अभिभूत (दबा) करके सत्त्वगुण की वृद्धि होती है, कभी रज और सत्त्व को दबाकर तमोगुण की वृद्धि होती है, तो कभी तम और सत्त्व को अभिभूत कर रजोगुण की वृद्धि होती है। ।।१४-१०।।

 

भावार्थ:

ये गुण प्रत्येक मनुष्य में अलग-अलग मात्रा में विध्यमान होते है। इसी कारण प्रत्येक मनुष्य का सभाव और क्षमता अलग-अलग होती है। एक मनुष्य में भी समय के अनुसार किसी गुण की अधिकता होती है और किसी की न्यूनता। पर होते तीनों गुण है।

 

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