भावार्थ:
विचार कुशल साधक, जिसका विवेक जाग्रत हो गया है, जिसको यह स्पष्टा से अनुभव में आ गया है की शरीर के कार्य का कारण त्रिगुण है और उसका गुणों से शरीर से कोई सम्बन्ध नहीं है। वह जीवित अवस्था में त्रिगुण का अतिक्रमण कर जाता है, गुणातीत हो जाता है। ऐसा योग स्थित साधक जन्म से, जीवन काल में और मृत्यु के समय होने वाले दुखों से मुक्त हो जाता है और समता को प्राप्त करता है। समता प्राप्ति से वह उस तत्व (आनद) का अनुभव करता है जो सनातन स्वरूप है, अतः अमृतत्व है।
धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, मनुष्य जीवन के चार पुरुषार्थ है। यह चार पुरुषार्थ को करना ही मनुष्य जीवन का उदेश्य है। उद्देश्य इसलिये है क्योंकि इन चार पुरुषार्थ को करने से ही मनुष्य का कल्याण है। धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, का अर्थ क्या है? यह पुरुषार्थ करने से मनुष्य का कल्याण किस प्रकार है? धर्म धर्म का अर्थ है कर्तव्य। श्रीमद […]
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