भावार्थ:
तीनो गुण मनुष्य (क्षेत्र) की मूल प्रकृति के कारण है, और उनके प्रभाव में शरीर में क्रिया होती है। जो पुरुष (चेतन तत्व) स्वयं को गुणों के प्रभाव से परे अनुभव करता है और स्वयं को कर्त्ता नहीं देखता, वह परमात्मतत्व (समता) को प्राप्त हो जाता है।
अतः मनुष्य, शरीर को ही अपना स्वरूप समझकर उससे तादात्म्य करके शरीर के विकारों को अपना विकार मानकर दुख, कष्ट और बन्धन का अनुभव करता हैं।
धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, मनुष्य जीवन के चार पुरुषार्थ है। यह चार पुरुषार्थ को करना ही मनुष्य जीवन का उदेश्य है। उद्देश्य इसलिये है क्योंकि इन चार पुरुषार्थ को करने से ही मनुष्य का कल्याण है। धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, का अर्थ क्या है? यह पुरुषार्थ करने से मनुष्य का कल्याण किस प्रकार है? धर्म धर्म का अर्थ है कर्तव्य। श्रीमद […]
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