भावार्थ:
जिस प्रकार उदासीन व्यक्ति अपने आस-पास होने वाली घटनाओं से विचलित नहीं होता, स्थिर रहता है। उसी प्रकार गुणातीत योग स्थित साधक गुणों के प्रभाव में स्वयं के अन्तःकरण मे उत्पन्न होने वाली वृत्तियों से प्रभावित अथवा विचलित नहीं होता। उसको यह अनुभव रहता है कि उत्पन्न होने वाली वृत्तियों का कारण त्रिगुण है और वह स्थिर रहता है।
यहाँ उदासीन व्यक्ति से तुलना करने का अर्थ यह नहीं है की गुणातीत कोई कार्य नहीं करता। इसके विपरीत वह प्राप्त कर्तव्यों को बड़ी तत्प्रता से करता है, परन्तु स्वयं के अंदर विकार रूपी भावना की उत्पति को स्थान नहीं देता।
धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, मनुष्य जीवन के चार पुरुषार्थ है। यह चार पुरुषार्थ को करना ही मनुष्य जीवन का उदेश्य है। उद्देश्य इसलिये है क्योंकि इन चार पुरुषार्थ को करने से ही मनुष्य का कल्याण है। धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, का अर्थ क्या है? यह पुरुषार्थ करने से मनुष्य का कल्याण किस प्रकार है? धर्म धर्म का अर्थ है कर्तव्य। श्रीमद […]
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