भावार्थ:
जो मनुष्य विचलित हुऐ बिना (निश्चित बुद्धि से), परमात्मा का चिन्तन करता हुआ, सभी कार्यो का कर्त्ता परमात्मा को देखते हुए, संसार के कल्याण के लिये कर्तव्य करता है, वह इन गुणोंका अतिक्रमण करके ब्रह्मप्राप्ति का पात्र (अधिकारी) हो जाता है।
इस श्लोक में भक्ति के साथ योग पद आया है, परन्तु गुणातीत होने के लिये उपाय रूप जो-जो कार्य इस श्लोक में कहे है, वह सब योग के अन्तर्गत आ जाते है।
निश्चित बुद्धि – ज्ञान योग है; परमात्मा का चिन्तन – ध्यान योग है; सभी कार्यो का कर्त्ता परमात्मा को देखना – भक्ति योग है; और कर्तव्यों को करना – कर्म योग है।
धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, मनुष्य जीवन के चार पुरुषार्थ है। यह चार पुरुषार्थ को करना ही मनुष्य जीवन का उदेश्य है। उद्देश्य इसलिये है क्योंकि इन चार पुरुषार्थ को करने से ही मनुष्य का कल्याण है। धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, का अर्थ क्या है? यह पुरुषार्थ करने से मनुष्य का कल्याण किस प्रकार है? धर्म धर्म का अर्थ है कर्तव्य। श्रीमद […]
Read MoreTo give feedback write to info@standupbharat.in
Copyright © standupbharat 2024 | Copyright © Bhagavad Geeta – Jan Kalyan Stotr 2024