श्रीमद भगवद गीता : १३

ध्यान योग के लिये शरीर की स्थिरता किस प्रकार की हो?

 

समं कायशिरोग्रीवं धारयन्नचलं स्थिरः।

संप्रेक्ष्य नासिकाग्रं स्वं दिशश्चानवलोकयन्।।६-१३।। 

 

काया, शिर और ग्रीवाको सीधे अचल धारण करके तथा दिशाओंको न देखकर केवल अपनी नासिकाके अग्रभागको देखते हुए स्थिर होकर बैठे। ।।६-१३।।

भावार्थ:

आसन पर बैठने के बाद कमर से लेकर गले तक (काया); गले से मस्तिष्क तक (ग्रीवा) तथा मस्तिष्क सीधे और स्थिर करके बैठे। अर्थात् रीढ़ की हड्डी दण्डकी तरह सीधी रहें और उसी सीध में मस्तक तथा ग्रीवा एक सूतमें अचल रहें। कारण कि इन तीनों के आगे झुकने से नींद आती है, पीछे झुकने से जडता आती है और दायें-बायें झुकने से चञ्चलता आती है।

काया, शिर और ग्रीवा एक सूतमें ही रहने से मन बहुत जल्दी शान्त और स्थिर हो जाता है।

आसनपर बैठे हुए कभी नींद सताने लगे, तो उठ कर थोड़ी देर इधर-उधर घूम ले और फिर स्थिरता से बैठ जाय।

दिशाओं में इधर-उधर न देख कर ग्रीवा को इस प्रकार स्थिर करे की दृष्टि, नासिका के अगर भाग की सीध में स्थित हो।

तत्प्रश्चात दृष्टि को नेत्र के मध्य में स्थित करके भौंहों की सीध में सामने की ओर एक बिन्दु पर केन्द्रित करे। पलके अर्ध रूप से मूँद कर रखे।

दिशाओं में इधर-उधर देखने से ग्रीवा हिलेगी और ध्यान में विक्षेप होगा।

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