भावार्थ:
योग में स्थित योगी की स्थिति क्या होती है उसका वर्णन अगले दो श्लोकों में हुआ है।
योग का अभ्यास करने से अर्थ है –
योग का अभ्यास करने से, जिस अवस्था में मन में संसारिक विषयों के प्रति आसक्ति नहीं रहती और उनका चिन्तन भी नहीं होता, तब वह अन्तःकरण की उपराम अवस्था है। उपराम अवस्था में एक विशेष प्रकार की शान्ति की अनुभूति होती है। अर्थात चित में किसी भी प्रकार की वृत्तियाँ उत्तपन्न नहीं होती।
इस अवस्था में योगी का संसारिक पदार्थों और शरीर पर आश्रय समाप्त हो जाता है। इन्द्रियों के विषय के प्रति राग-द्वेष समाप्त होने से अनुभव करने को कुछ नहीं रहता। अनुभव केवल शान्त चित का होता है। राग-द्वेष न रहने से, विषयों में स्पृहा न होने से, अन्तःकरण में किसी प्रकार के आभाव की अनुभूति नहीं होती, इसलिये योगी सन्तुष्ट रहता है।
धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, मनुष्य जीवन के चार पुरुषार्थ है। यह चार पुरुषार्थ को करना ही मनुष्य जीवन का उदेश्य है। उद्देश्य इसलिये है क्योंकि इन चार पुरुषार्थ को करने से ही मनुष्य का कल्याण है। धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, का अर्थ क्या है? यह पुरुषार्थ करने से मनुष्य का कल्याण किस प्रकार है? धर्म धर्म का अर्थ है कर्तव्य। श्रीमद […]
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