भावार्थ:
पूर्व श्लोक में (अध्याय ६ श्लोक २१) में भगवान श्रीकृष्ण ने वर्णन किया है कि आत्यन्तिक सुख बुद्धि की कल्पना से परे है। फिर भी संसारिक मनुष्य को आत्यन्तिक सुख का महत्त्व बताने के लिये लाभ-हानि का विषय प्रस्तुत किया है।
मनुष्य का सभाव होता है कि अगर मनुष्य को किसी वस्तु/परिस्थिति को प्राप्त करने में अधिक लाभ दिखता है, तो वह उसको प्राप्त करने का प्रयत्न करता है। अधिक लाभ वाली वस्तु/परिस्थिति को प्राप्त करने के लिये उसको कम लाभ वाली वस्तु/परिस्थिति का त्याग करना पड़े तो वह सरलता से त्याग कर देता है। उसके लिये अधिक लाभ के आगे कम लाभ वाली वस्तु/परिस्थिति का महत्त्व नहीं रहता। साथ ही अधिक लाभ वाली वस्तु/परिस्थिति को प्राप्त करने में अगर उसको कष्ट/दुःख होता है, तो वह उस कष्ट/दुःख से विचलित नहीं होता।
इस स्वभाव को देखते हुए भगवान श्रीकृष्ण इस श्लोक में कहते है कि, आत्यन्तिक सुख को प्राप्त करना मनुष्य के लिये सबसे अधिक लाभ पूर्ण कार्य है। कारण की आत्यन्तिक सुख नित्य रहने वाला है और इसको प्राप्त करने पर मनुष्य भय मुक्त और निर्विकार हो जाता है। इसके विपरित सांसारिक सुख क्षणिक है और सुख के साथ दुख भी स्थित है।
साथ ही भगवान श्रीकृष्ण कहते है कि, सांसारिक वस्तु/परिस्थिति का महत्त्व न रहने पर और आत्यन्तिक सुख की अनुभूति होने पर साधक को संसारिक वस्तु/परिस्थिति की प्राप्ति अथवा अप्राप्ति विचलित नहीं करती। अर्थात संसार का भारी से भारी दुख भी साधक को विचलित नहीं करता। जब तक मनुष्य का सम्बन्ध संसार और शरीर से है तब तक मनुष्य को दुःख है। संसार में रहते हुए संसार से सम्बन्ध विच्छेद हुआ, और दुःख के अस्तित्व की समाप्ति।
अध्याय २ श्लोक ४६ में भी भगवान श्रीकृष्ण कहते है जब मनुष्य को परमानन्द की प्राप्ति हो जाती है, तब सांसारिक भोगों से कुछ भी प्रयोजन नहीं रहता। अनन्त परमानन्द के प्राप्त होने के उपरान्त, सांसारिक सुख की प्राप्ति बहुत स्वल्प है और उनका कोई महत्व नहीं है।
धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, मनुष्य जीवन के चार पुरुषार्थ है। यह चार पुरुषार्थ को करना ही मनुष्य जीवन का उदेश्य है। उद्देश्य इसलिये है क्योंकि इन चार पुरुषार्थ को करने से ही मनुष्य का कल्याण है। धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, का अर्थ क्या है? यह पुरुषार्थ करने से मनुष्य का कल्याण किस प्रकार है? धर्म धर्म का अर्थ है कर्तव्य। श्रीमद […]
Read MoreTo give feedback write to info@standupbharat.in
Copyright © standupbharat 2024 | Copyright © Bhagavad Geeta – Jan Kalyan Stotr 2024