भावार्थ:
हे कृष्ण! मेरे इस संशय को निःशेषता से काटने के लिये अर्थात् नष्ट करने के लिये आप ही समर्थ हैं क्योंकि आप ही योग युक्त है। आप बिना अभ्यास, परिश्रम के सर्वत्र सब कुछ जानने वाले हैं। आपके समान जानकार कोई हो सकता ही नहीं। आप साक्षात् भगवान् हैं और सम्पूर्ण प्राणियों की गति-आगति को जानने वाले हैं।
इस संशय का निराकरण करके मेरे मन के विक्षेपों को शान्त कर सकते है।
अभ्यास काल में साधक लघु, अल्प विषयानन्द का त्याग कर देता है और जब तक वह योग में स्थित नहीं होता तब तक उसको योग सिद्धि से परमान्द की प्राप्ति भी नहीं होती। अर्जुन का प्रश्न है की अगर अभ्यास काल में किसी कारण वश, मन विचलित हो गया तो उसके पास न तो संसारके भोग ही रह जायगे और न ही उसको योग की प्राप्ति होगी। अतः ऐसा साधक तो कही का भी नहीं रह जायगा। वह तो छिन्नभिन्न हो जायगा।
धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, मनुष्य जीवन के चार पुरुषार्थ है। यह चार पुरुषार्थ को करना ही मनुष्य जीवन का उदेश्य है। उद्देश्य इसलिये है क्योंकि इन चार पुरुषार्थ को करने से ही मनुष्य का कल्याण है। धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, का अर्थ क्या है? यह पुरुषार्थ करने से मनुष्य का कल्याण किस प्रकार है? धर्म धर्म का अर्थ है कर्तव्य। श्रीमद […]
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