भावार्थ:
अध्याय ४ श्लोक १९ में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है की मनुष्य के सभी कार्य कामना पूर्ति के संकल्प से रहित होने चाहिये। उसी विषय को भगवान श्रीकृष्ण इस श्लोक में पुनः कहते है।
योगारूढ़ वह मनुष्य है :-
श्लोक के सन्दर्भ मे:
प्रारब्ध के अनुसार प्राप्त होने वाले शब्द, स्पर्श, रूप, रस और गन्ध – इन पाँचों विषयों में; पदार्थ, परिस्थिति, घटना, व्यक्ति आदिमें और शरीरके आराम, मान, बड़ाई आदि में भोग बुद्धि से भोग न करे। प्रत्युत यह अनुभव करे कि ये सब विषय, पदार्थ आदि आये हैं और प्रतिक्षण चले जा रहे हैं। ये आने-जानेवाले और अनित्य हैं। ऐसा अनुभव कर के इनसे निर्लेप रहे।
कार्यों से किसी प्रकार का सम्बन्ध न जोड़े। ऐसा विचार करे की प्राप्त कर्तव्य परमात्मा से प्राप्त हुए है और उनसे प्राप्त शरीर के द्वारा वह कार्य किये जा रहे है। इस में कर्ता भाव करने का कोई कारण नहीं है।
धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, मनुष्य जीवन के चार पुरुषार्थ है। यह चार पुरुषार्थ को करना ही मनुष्य जीवन का उदेश्य है। उद्देश्य इसलिये है क्योंकि इन चार पुरुषार्थ को करने से ही मनुष्य का कल्याण है। धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, का अर्थ क्या है? यह पुरुषार्थ करने से मनुष्य का कल्याण किस प्रकार है? धर्म धर्म का अर्थ है कर्तव्य। श्रीमद […]
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