श्रीमद भगवद गीता : ४६

सकाम भाव वाले तपस्वी, ज्ञानी, कर्मकाण्डी, से योगी श्रेष्ठ है।

तपस्विभ्योऽधिको योगी ज्ञानिभ्योऽपि मतोऽधिकः।

 कर्मिभ्यश्चाधिको योगी तस्माद्योगी भवार्जुन।।६-४६।।

 

(सकामभाववाले) तपस्वियोंसे भी योगी श्रेष्ठ है, ज्ञानियोंसे (शास्त्रविषय युक्त) भी योगी श्रेष्ठ है और कर्मियोंसे (अग्निहोत्रादि कर्म) भी योगी श्रेष्ठ है – ऐसा मेरा मत है। अतः हे अर्जुन! तुम योगी हो जाओं। ।।६-४६।।

भावार्थ:

कामना पूर्ति, ऋद्धि-सिद्धि, आदि को पाने के लिये जो भूख-प्यास, सरदी-गरमी, एवं अनेक प्रकार के शरीक कष्ट को सहते हैं, वे तपस्वी हैं। इसी प्रकार समाज कल्याण, कर्तव्य परायणता, योग साधना के लिये भी साधक अनेक प्रकार के शरीक कष्ट को सहन करता है। अतः वह भी तपस्वी है। परन्तु सकाम भाव के लिये किया गया तप से, योग के लिये किया गया तप श्रेष्ठ है।

शास्त्रों को जानने वाले, पढ़े-लिखे विद्वानों को यहाँ ‘ज्ञानी’ कहा है। इस प्रकार के ज्ञानी शास्त्रों का विवेचन करते हैं। ज्ञानयोग, कर्मयोग, भक्ति योग क्या है और इनमें श्रेष्ठ योग क्या है इसका शस्त्राथ, प्रवचन करते है। परन्तु इनका उद्देश्य सांसारिक भोग और ऐश्वर्य ही होता है। इस प्रकार के ज्ञानी को शास्त्रों का ज्ञान तो होता है, परन्तु वह भोग, आसक्ति से मुक्त नहीं होता और न ही उसके लिये प्रयत्न करते है। अतः उनको आसक्त ज्ञानी कहा जा सकता है।

परन्तु जो साधक तत्व ज्ञान प्राप्त कर योग सिद्धि के लिये साधना करता है, वह योगी है और श्रेष्ठ है।

इस लोक में राज्य, धन-सम्पत्ति, सुख-आराम, भोग आदि मिल जाय और मरने के बाद परलोक में ऊँचे-ऊँचे लोकों की प्राप्ति हो जाय और उन लोकों का सुख मिल जाय। जो ऐसा उद्देश्य रखकर देवताओं की उपासना करता, यज्ञ-हवन करता, तीर्थ करता है उसको कर्मकाण्डी कहा जाता है। इस के विपरीत जिसके सभी कर्म मनुष्य धर्म पालन हेतु, समाज कल्याण और योग सिद्धि के लिये होते हैं वह कर्म योगी है।

भगवान श्रीकृष्ण कहते है कि कर्मकाण्डी की अपेक्षा कर्म योगी श्रेष्ठ है। अतः हे अर्जुन तुम योगी बनो!

PREVIOUS                                                                                                                                          NEXT

धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष

धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, मनुष्य जीवन के चार पुरुषार्थ है। यह चार पुरुषार्थ को करना ही मनुष्य जीवन का उदेश्य है। उद्देश्य इसलिये है क्योंकि इन चार पुरुषार्थ को करने से ही मनुष्य का कल्याण है। धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, का अर्थ क्या है? यह पुरुषार्थ करने से मनुष्य का कल्याण किस प्रकार है? धर्म धर्म का अर्थ है कर्तव्य। श्रीमद […]

Read More

अध्याय