भावार्थ:
श्लोक में पुनः परमात्मतत्व की विशेषता का वर्णन किया है जो की वास्तव में शब्दों से व्यक्त किया नहीं जा सकता। पुनः संसार का चिन्तन का त्याग कर केवल परमात्मतत्व का चिन्तन करने को बल दिया है।
हम देखते हैं तो नेत्रोंसे देखते हैं। नेत्रोंके ऊपर मन शासन करता है, मनके ऊपर बुद्धि और बुद्धिके ऊपर ‘अहम्’ शासन करता है तथा ‘अहम्’ के ऊपर भी जो शासन करता है, जो सबका आश्रय, प्रकाशक और प्रेरक है, वह (परमात्मतत्व) ‘अनुशासिता’ है।
परमात्मा परमाणुसे भी अत्यन्त सूक्ष्म हैं। आज का वैज्ञानिक परमाणु से भी कुछ सूक्षम है ऐसा मानता है, परन्तु उसको शोध दुवारा जान नहीं पाया है। और जाना भीं जा सकता।
धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, मनुष्य जीवन के चार पुरुषार्थ है। यह चार पुरुषार्थ को करना ही मनुष्य जीवन का उदेश्य है। उद्देश्य इसलिये है क्योंकि इन चार पुरुषार्थ को करने से ही मनुष्य का कल्याण है। धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, का अर्थ क्या है? यह पुरुषार्थ करने से मनुष्य का कल्याण किस प्रकार है? धर्म धर्म का अर्थ है कर्तव्य। श्रीमद […]
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