श्रीमद भगवद गीता : १८

अव्यक्ताद्व्यक्तयः सर्वाः प्रभवन्त्यहरागमे।

रात्र्यागमे प्रलीयन्ते तत्रैवाव्यक्तसंज्ञके।।८-१८।।

 

दिन का उदय होने पर अव्यक्त से (यह) व्यक्त (चराचर जगत्) उत्पन्न होता है; और रात्रि के आगमन पर उसी अव्यक्त में लीन हो जाता है। ।।८-१८।।

 

भावार्थ:

निंद्रा अवस्था में जो संसार अव्यक्त था, वह जाग्रत अवस्था (दिन) में व्यक्त हो जाता है। रात होने पर, अर्थात निंद्रा में यह चराचर जगत् पुनः अव्यक्त हो जाता है।

अतः मनुष्य के लिये यह संसार व्यक्त इन्द्रियों के कारण ही है।

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