श्रीमद भगवद गीता : १५

मामुपेत्य पुनर्जन्म दुःखालयमशाश्वतम्।

नाप्नुवन्ति महात्मानः संसिद्धिं परमां गताः।।८-१५।।

 

महात्मालोग मुझे प्राप्त करके दुःखालय और अशाश्वत पुनर्जन्मको प्राप्त नहीं होते; क्योंकि वे परमसिद्धिको प्राप्त हो गये हैं। ।।८-१५।।

भावार्थ:

मनुष्य को मृत्यु प्रान्त क्या होगा, इसको जानने की उत्सुकता बानी रहती है। इसी उत्सुकता को देखते हुए भगवान श्रीकृष्ण कहते है कि जो साधक योग स्थित है वह महात्मा मृत्यु उपरांत पुनः संसार में जन्म नहीं लेता। वह जन्म जो दुःखों से भरा और वह शरीर जो अशाश्वत है।

पुनः जन्म कियु नहीं लेते, कियुकी वह योग सिद्धि, जो की परमसिद्धि है उसको प्राप्त होते है।

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