श्रीमद भगवद गीता : १७

सहस्रयुगपर्यन्तमहर्यद्ब्रह्मणो विदुः।

रात्रिं युगसहस्रान्तां तेऽहोरात्रविदो जनाः ।।८-१७।।

 

जो मनुष्य ब्रह्माके एक हज़ार चतुर्युगीवाले एक दिनको और सहस्त्र चतुर्युगीपर्यन्त एक रातको जानते हैं, वे मनुष्य ब्रह्माके दिन और रातको जाननेवाले हैं। ।।८-१७।।

भावार्थ:

कितनी ही बड़ी आयु क्यों न हो, वह भी कालकी अवधिवाली ही है। ऊँचे-से-ऊँचे कहे जानेवाले जो भोग हैं, वे भी संयोगजन्य और कुछ समय के लिये होने के कारण, दुःखोंके ही कारण हैं।

ब्रह्मलोक के एक दिन की अवधि मनुष्य के दिन की अवधि से कितनी भी अधिक क्यों न हो, उसका भी अंत होता है। इस प्रकार कालके तत्त्वको जाननेवाले मनुष्य ब्रह्मलोक तक के दिव्य भोगों को किञ्चिन्मात्र भी महत्त्व नहीं देते।

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