श्रीमद भगवद गीता : २१

अव्यक्तोऽक्षर इत्युक्तस्तमाहुः परमां गतिम्।

यं प्राप्य न निवर्तन्ते तद्धाम परमं मम ।।८-२१।।

 

उसीको अव्यक्त और अक्षर कहा गया है और उसी को परमगति कहा गया है तथा जिसको प्राप्त होनेपर जीव फिर लौटकर नहीं आते, वह मेरा परमधाम है। ।।८-२१।।

 

भावार्थ:

परमात्मतत्व ही वह परमानन्द भाव है जिस को योग साधना के सिद्ध होने पर साधक परमानन्द को प्राप्त होता है और पुनः उस भाव से लौटता नहीं है। यह ही मनुष्य का परम जीवन लक्ष्य है।

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