भावार्थ:
जो सांसारिक पदार्थों और भोगोंसे विमुख होकर परमात्माके सम्मुख हो गये हैं, वे अनावृत ज्ञानवाले हैं अर्थात् उनका ज्ञान (विवेक) ढका हुआ नहीं है, प्रत्युत जाग्रत् है। इसलिये वे अनावृत्तिके मार्गमें जाते हैं, जहाँसे फिर लौटना नहीं पड़ता। निष्कामभाव होनेसे उनके मार्ग में प्रकाश अर्थात् विवेक की मुख्यता रहती है।
सांसारिक पदार्थों और भोगोंमें आसक्ति, कामना और ममता रखनेवाले जो पुरुष अपने स्वरूपसे तथा परमात्मा से विमुख हो गये हैं, वे आवृत ज्ञानवाले हैं अर्थात् उनका ज्ञान (विवेक) ढका हुआ है। इसलिये वे आवृत्तिके मार्गमें जाते हैं, जहाँ से फिर लौटकर जन्म-मरण के चक्रमें आना पड़ता है। सकामभाव होनेसे उनके मार्ग में अन्धकार अर्थात् अविवेक की मुख्यता रहती है।
धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, मनुष्य जीवन के चार पुरुषार्थ है। यह चार पुरुषार्थ को करना ही मनुष्य जीवन का उदेश्य है। उद्देश्य इसलिये है क्योंकि इन चार पुरुषार्थ को करने से ही मनुष्य का कल्याण है। धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, का अर्थ क्या है? यह पुरुषार्थ करने से मनुष्य का कल्याण किस प्रकार है? धर्म धर्म का अर्थ है कर्तव्य। श्रीमद […]
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