भावार्थ:
अध्याय ८ श्लोक २ में अर्जुन प्रश्न करते है कि अन्त समय में परमात्मा किस प्रकार जानने मे आते है? इसका उत्तर भगवान् श्रीकृष्ण अगले २ श्लोक में देते हैं।
ऐसा ही प्रश्न अर्जुन ने अध्याय ६ श्लोक ३७ में भगवान् श्रीकृष्ण से किया था कि, अन्त समय तक योग सिद्धि न होने पर मनुष्य की क्या गति होती है।
इस श्लोक में भगवान् श्रीकृष्ण कहते हैं कि जो साधक योग आरूढ़ हैं और अन्त समय आते-आते भी अगर साधक का चिन्तन केवल परमात्मा का रह जाता है तो भी वह मृत्यु के भय से मुक्त और परमात्मा स्वरूप को प्राप्त हो जाता है।
प्रकृति में सुनने समझने और मानने में जो कुछ भी आता है, उन सबका कारण परमात्मतत्व ही है अन्य कुछ भी नहीं – इस प्रकार का चिन्तन होने पर मनुष्य अन्त समय में मुक्ति को प्राप्त होता है।
अन्तःकारण में किसी भी प्रकार की कामना, राग-द्वेष, अहंता, ममता न रहने पर, मनुष्य का सांसारिक सम्बन्ध नहीं रहता। और तब मनुष्य का चिन्तन केवल परमात्मतत्व का रहे जाता है। ऐसी स्थिति में मृत्यु को प्राप्त होने पर मनुष्य मुक्ति को प्राप्त होता है।
मृत्यु काल में जब मनुष्य केवल परमात्मा का ही चिन्तन करता है, और उसके सांसारिक विषय सब समाप्त हो गये है – तब मनुष्य परमात्मा को प्राप्त होता है, इस में संशय नहीं है – ऐसा विश्वास भगवान श्रीकृष्ण इस श्लोक में देते है।
इस श्लोक में “मेरा स्मरण” का तात्पर्य परमात्मतत्व के साकार रूप से है।
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