भावार्थ:
अध्याय ७ में भगवान श्रीकृष्ण ने परमात्मतत्व का जो विज्ञान है, उसका वर्णन किया था। उसी विज्ञान को पुनः और अधिक स्पष्टता से वर्णन करने का वचन इस अध्याय में देते है।
साथ ही कहते है की यह विज्ञान अति गूढ़ है। गूढ़ इसलिये है, क्योकि हर कोई इस विज्ञान का वर्णन नहीं कर सकता। साथ ही मनुष्य के कल्याण के लिये इस महत्वपूर्ण विज्ञान को जानना अति आवश्यक है।
साथ ही कहते है कि इसको दोष-दृष्टि से रहित हो कर सुनना और समझना होगा।
मनुष्य जब किसी विषय में दोष-दृष्टि रख कर सुनता है, तब वह विषय समझ में नहीं आता। इसलिये भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को दोष-दृष्टि से रहित हो कर सुनने को कहते है।
अर्जुन युद्ध में अपने सम्बन्धियों को मारना अशुभ कार्य मानते है। वह मानते है कि सम्बन्धियों को मारने से पाप लगेगा, धर्म नष्ट होगा। साथ ही सम्बन्धियों के मरने से दुःख होगा। इसलिये भगवान श्रीकृष्ण कहते है कि इस विज्ञान का ज्ञान प्राप्त करने पर तुम अगर अशुभ कार्य भी करोगे तो भी तुम मोक्ष को प्राप्त हो जाओंगे।
मोक्ष का अर्थ है, पाप-पुण्य से मुक्ति, सुख-दुःख से बन्धन से मुक्ति और मृत्यु के भय से मुक्ति।
धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, मनुष्य जीवन के चार पुरुषार्थ है। यह चार पुरुषार्थ को करना ही मनुष्य जीवन का उदेश्य है। उद्देश्य इसलिये है क्योंकि इन चार पुरुषार्थ को करने से ही मनुष्य का कल्याण है। धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, का अर्थ क्या है? यह पुरुषार्थ करने से मनुष्य का कल्याण किस प्रकार है? धर्म धर्म का अर्थ है कर्तव्य। श्रीमद […]
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