भावार्थ:
दैवी सम्पत्तिके गुण वाले साधक का आचरण किस प्रकार का होता है, उसका वर्णन अध्याय १६ श्लोक १ से अध्याय १६ श्लोक ३ में हुआ है।
दैवी सम्पत्ति के गुण वाले साधक, जिसके मन में परमात्मा से अन्य कोई और विचार नहीं है उनको अनन्यमन वाले पद से कहा है। जो ज्ञानी समस्त प्राणियों की उत्पति और क्रियाओं का कारण अविनाशी परमात्मतत्व को मानता है, ऐसा महात्मा केवल प्रकृत्ति-समाज के कल्याण के लिए ही कार्य करते है।
धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, मनुष्य जीवन के चार पुरुषार्थ है। यह चार पुरुषार्थ को करना ही मनुष्य जीवन का उदेश्य है। उद्देश्य इसलिये है क्योंकि इन चार पुरुषार्थ को करने से ही मनुष्य का कल्याण है। धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, का अर्थ क्या है? यह पुरुषार्थ करने से मनुष्य का कल्याण किस प्रकार है? धर्म धर्म का अर्थ है कर्तव्य। श्रीमद […]
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