भावार्थ:
कई ज्ञानयोगी साधक ज्ञानयज्ञसे अर्थात् विवेकपूर्वक असत्का त्याग करते हुए सर्वत्र व्यापक परमात्मतत्त्वको और अपने वास्तविक स्वरूपको एक मानते हुए उपासना करते हैं।
कई साधक अपनेको सेवक मानकर और मात्र संसारको भगवान्का विराट्रूप मानकर अपने शरीर, इन्द्रियाँ, मन, बुद्धि आदिकी सम्पूर्ण क्रियाओंको तथा पदार्थोंको संसारकी सेवामें ही लगा देते हैं। संसार को सुख कैसे हो, सबका दुःख कैसे मिटे, इनकी सेवा कैसे बने, ऐसी विचारधारासे वे अपने तन, मन, धन आदिसे जनता-जनार्दनकी सेवामें ही लगे रहते हैं, भगवत्कृपासे उनको पूर्णताकी प्राप्ति हो जाती है।
जो साधक संसारकी सेवा करते है वह सही करते है।
धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, मनुष्य जीवन के चार पुरुषार्थ है। यह चार पुरुषार्थ को करना ही मनुष्य जीवन का उदेश्य है। उद्देश्य इसलिये है क्योंकि इन चार पुरुषार्थ को करने से ही मनुष्य का कल्याण है। धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, का अर्थ क्या है? यह पुरुषार्थ करने से मनुष्य का कल्याण किस प्रकार है? धर्म धर्म का अर्थ है कर्तव्य। श्रीमद […]
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