भावार्थ:
इस श्लोक में आगे कहे जाने वाले विषय की विशेषता का वर्णन किया है।
यह विज्ञानसहित ज्ञान सम्पूर्ण विद्याओंका राजा है; क्योंकि इसको ठीक तरहसे जान लेनेके बाद कुछ भी जानना बाकी नहीं रहता।
संसार में रहस्यकी जितनी गुप्त बाते हैं, उन सब बातों का यह राजा है।
इस विद्याके समान पवित्र करनेवाली दूसरी कोई विद्या है ही नहीं। यह सर्वश्रेष्ठ है।
इसका फल प्रत्यक्ष है। जो मनुष्य इस बातको जितना जानेगा, वह उतना ही अपने में विलक्षणता का अनुभव करेगा। इस बातको जानते ही परमगति प्राप्त हो जाय–यह इसका प्रत्यक्ष फल है।
यह धर्ममय है। परमात्मा का लक्ष्य होने पर निष्काम भावपूर्वक जितने भी कर्तव्य-कर्म किये जायँ, वे सब-के-सब इस धर्मके अन्तर्गत आ जाते हैं। अतः यह विज्ञानसहित ज्ञान सभी धर्मोंसे परिपूर्ण है।
इसमें कभी किञ्चिन्मात्र भी कमी नहीं आती, इसलिये यह अविनाशी है। यह करने में बहुत सुगम है।
धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, मनुष्य जीवन के चार पुरुषार्थ है। यह चार पुरुषार्थ को करना ही मनुष्य जीवन का उदेश्य है। उद्देश्य इसलिये है क्योंकि इन चार पुरुषार्थ को करने से ही मनुष्य का कल्याण है। धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, का अर्थ क्या है? यह पुरुषार्थ करने से मनुष्य का कल्याण किस प्रकार है? धर्म धर्म का अर्थ है कर्तव्य। श्रीमद […]
Read MoreTo give feedback write to info@standupbharat.in
Copyright © standupbharat 2024 | Copyright © Bhagavad Geeta – Jan Kalyan Stotr 2024