भावार्थ:
भोग और ऐश्वर्यको चाहनेवाले पुरुष वेदों और शास्त्रोंमें वर्णित नियमों, व्रतों, मन्त्रों, पूजनविधियों आदिके अनुसार अपनेअपने उपास्य देवताओं का पूजन करते हैं।
लौकिक सिद्धि चाहनेवाले मनुष्य पितरोंके व्रतोंका, नियमोंका, पूजन-विधियोंका पालन करते हैं और पितरोंको अपना इष्ट मानते हैं।
तामस स्वभाववाले मनुष्य सकामभावपूर्वक भूतप्रेतोंका पूजन करते हैं और उनके नियमोंको धारण करते हैं।
इस प्रकार नियमों का पालन और पूजन करने से देवता, पितर, भूत प्रेत, अपनी यथा शक्ति, सामर्थ्य के अनुसार विनाशी भोग प्रदान करते हैं। प्राप्त भोगों को भोगने से अन्त: करण मे विषमता बनी रहती हैं, सुख दुःख का बन्धन बना रहता है।
जो साधक अनन्य भाव से परमात्मा का चिन्तन करता हुआ, भक्ति पूर्वक, निष्काम भाव से समाज कल्याण के लिये ही सारे कार्य करता है, वह समता को- परमात्मा को प्राप्त होता है।
धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, मनुष्य जीवन के चार पुरुषार्थ है। यह चार पुरुषार्थ को करना ही मनुष्य जीवन का उदेश्य है। उद्देश्य इसलिये है क्योंकि इन चार पुरुषार्थ को करने से ही मनुष्य का कल्याण है। धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, का अर्थ क्या है? यह पुरुषार्थ करने से मनुष्य का कल्याण किस प्रकार है? धर्म धर्म का अर्थ है कर्तव्य। श्रीमद […]
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