भावार्थ:
अध्याय ९ श्लोक १४ में जिसका वर्णन किया है उसका पुनः इस प्रकार कहते है।
मन को इन्द्रियों के विषयों से हटा कर, मन की चंचलता को नियमित कर स्थिर मन वाले बनो। अनन्य भाव से परमात्मा का चिंतन करना और अहंता का त्याग करो। मनुष्य धर्म का पालन करो। सभी कार्य प्रकृति-समाज कल्याण के लिये हो। स्वयं में और सभी प्राणियों में केवल एक परमात्मतत्व व्याप्त है ऐसा भाव रख कर अहंता का त्याग करो। इस प्रकार अन्तः करण को समता से युक्त करने पर मृत्यु होने पर भी समता का भाव रहने से परमात्मा को प्राप्त हो जाओगे।
यह ही योग साधना है।
धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, मनुष्य जीवन के चार पुरुषार्थ है। यह चार पुरुषार्थ को करना ही मनुष्य जीवन का उदेश्य है। उद्देश्य इसलिये है क्योंकि इन चार पुरुषार्थ को करने से ही मनुष्य का कल्याण है। धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, का अर्थ क्या है? यह पुरुषार्थ करने से मनुष्य का कल्याण किस प्रकार है? धर्म धर्म का अर्थ है कर्तव्य। श्रीमद […]
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