श्रीमद भगवद गीता : ३४

मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु।

मामेवैष्यसि युक्त्वैवमात्मानं मत्परायणः।।९-३४।।

 

 

(तुम) मुझमें स्थिर मन वाले बनो; मेरे भक्त और मेरे पूजन करने वाले बनो; मुझे नमस्कार करो; इस प्रकार मत्परायण (अर्थात् मैं ही जिसका परम लक्ष्य हूँ ऐसे) होकर आत्मा को मुझसे युक्त करके तुम मुझे ही प्राप्त हो जाओगे। ।।९-३४।।

 

भावार्थ:

अध्याय ९ श्लोक १४ में जिसका वर्णन किया है उसका पुनः इस प्रकार कहते है।

मन को इन्द्रियों के विषयों से हटा कर, मन की चंचलता को नियमित कर स्थिर मन वाले बनो। अनन्य भाव से परमात्मा का चिंतन करना और अहंता का त्याग करो। मनुष्य धर्म का पालन करो। सभी कार्य प्रकृति-समाज कल्याण के लिये हो। स्वयं में और सभी प्राणियों में केवल एक परमात्मतत्व व्याप्त है ऐसा भाव रख कर अहंता का त्याग करो। इस प्रकार अन्तः करण को समता से युक्त करने पर मृत्यु होने पर भी समता का भाव रहने से परमात्मा को प्राप्त हो जाओगे।

यह ही योग साधना है।

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