श्रीमद भगवद गीता : ०४

मया ततमिदं सर्वं जगदव्यक्तमूर्तिना।

मत्स्थानि सर्वभूतानि न चाहं तेष्ववस्थितः।।९-४।।

 

यह सब संसार मेरे निराकार स्वरूप से व्याप्त है। सम्पूर्ण प्राणी मेरे में स्थित हैं; परन्तु मैं उनमें स्थित नहीं हूँ तथा वे प्राणी भी मुझ में स्थित नहीं हैं। ।।९-४।।

भावार्थ:

अध्याय ८ श्लोक ९ में परमात्मतत्व को परमाणु से भी अत्यन्त सूक्ष्म हैं ऐसा कहा गया है। निश्चय ही जो तत्व परमाणु से भी अत्यन्त सूक्ष्म है वह निराकार ही होगा। जिस प्रकार किसी भी पदार्थ का परमाणु उस पदार्थ में व्यापक रूप से व्याप्त रहेता है परन्तु वह जानने में नहीं आता। उसी प्रकार परमात्मतत्व, जो परमाणुसे भी सूक्ष्म है, समस्त ब्रमांड में व्याप्त है।

हर अलग-अलग पदार्थ का परमाणु अलग है। पदार्थ के गुण के अनुसार परमाणु का निश्चित गुण है। परन्तु परमात्मतत्व सभी पदार्थों के परमाणु का भी कारण होने के कारण, पदार्थ के परमाणु मे व्याप्त है, अतः पदार्थ में व्याप्त है, सभी पदार्थों में समान रूप से व्याप्त है, प्रकृति में व्याप्त है और समस्त ब्रमांड में व्याप्त है। पदार्थ के परमाणु का तो गुण है, परन्तु परमात्मतत्व का अपना कोई गुण नहीं है।

कियुकि परमात्मतत्व सम्पूर्ण ब्रमांड में समान रूप से व्याप्त है, इसलिये सभी प्राणी परमात्मतत्व में स्थित है। परन्तु सभी प्राणी परमात्मतत्व में स्थित होने पर भी, प्राणियों में क्रिया स्वयं ही हो रही है, परमात्मतत्व के दुवारा करवाई नहीं जा रही। कारण कि वह कराने वाला नहीं है। दूसरा कारण है कि परमात्मतत्व तो निर्विकार, उत्पत्ति-विनाश और क्रिया से रहित है, परन्तु यह प्रकृति परमात्मतत्व में स्थित होने पर भी, उत्पत्ति-विनाश वाली है, उसमें अनेक प्रकार के विकार है और उसमें क्रिया भी होती है। अतः परमात्मतत्व की स्थिति निरन्तर रहती है, परन्तु परमात्मतत्व से प्रतिष्ठित साकार प्रकृति की स्थिति में निरन्तन परिवर्तन होता है।

परमात्मतत्व परमाणुसे भी सूक्ष्म रूप से प्राणियों में स्थित है, परन्तु कर्ता रूप से नहीं! कारण कि परमात्मतत्व में कोई गुण नहीं और क्रिया नहीं।

जिस प्रकार प्राणी में परिवर्तन होता है, वह परिवर्तन परमात्मतत्व में होता। प्राणी की कोशिकाओं का और स्वयं प्राणी का नाश तो होता है, परन्तु परमात्मतत्व का नाश नहीं होता। अतः परमात्मतत्व मूल तत्व के रूप में प्राणी स्थित है, परमात्मतत्व की सत्तासे ही प्राणी सत्ता है, परन्तु न तो परमात्मतत्व कोई क्रिया है न ही किसी प्रकार का विकार है।

अब के आधुनिक समय में वैज्ञानिक हर क्रिया का कारण देखता है परन्तु इस अनुसन्धान में एक स्तिथि आती है जब क्रिया दो दिखती है परन्तु कारण नहीं दिखता। अतः जो नहीं दिखता वह परमात्मतत्व है। पूर्व काल में पदार्थ का परमाणु भी नहीं दीखता था पर था। अब उस परमाणु जाना जासका है तो मनुष्य कहता है कि परमाणु है।

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