श्रीमद भगवद गीता : ०७

सर्वभूतानि कौन्तेय प्रकृतिं यान्ति मामिकाम्।

कल्पक्षये पुनस्तानि कल्पादौ विसृजाम्यहम्।।९-७।।

 

हे कुन्तीनन्दन! कल्पोंका क्षय होनेपर सम्पूर्ण प्राणी अपनी मूल प्रकृति को प्राप्त होते हैं और उसी बीज रूपी मूल प्रकृति से उनकी रचना होती है। ।।९-७।।

भावार्थ:

प्राणी का जो जीवन काल है, उसके पूर्ण होने पर पांच तत्वों से बना शरीर पांच तत्वों में परिवर्तित हो जाता है और प्राणी का जो चेतनतत्त्व है वह परमात्मतत्व में विलीन हो जाता है। परमात्मतत्व की जो मूल प्रकृति है, पुनः उसका बीज रूप से गर्भ में स्थापना होती है, जिससे प्राणी की उत्पत्ति होती है।

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