श्रीमद भगवद गीता : ०८

प्रकृतिं स्वामवष्टभ्य विसृजामि पुनः पुनः।

भूतग्राममिमं कृत्स्नमवशं प्रकृतेर्वशात्।।९-८।।

प्रकृतिके वशमें होनेसे परतन्त्र हुए यह सम्पूर्ण प्राणि समुदाय अपनी प्रकृति के वश हो कर बीज रूप में से बार-बार उत्त्पति होती है। ।।९-८।।

भावार्थ:

प्राणि समुदाय अपनी प्रकृति के वश में होने के कारण, माता रूपी मूल प्रकृति के गर्भ में पिता रूपी बीज स्थापना होती है, जिससे प्राणी की रचना होती है।

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