श्रीमद भगवद गीता : ०९

न च मां तानि कर्माणि निबध्नन्ति धनञ्जय।

उदासीनवदासीनमसक्तं तेषु कर्मसु।।९-९।।

हे धनञ्जय! उन (सृष्टि-रचना आदि) कर्मों में अनासक्त और उदासीन की तरह रहते हुए मेरे को वे कर्म नहीं बाँधते। ।।९-९।।

 

भावार्थ:

इस श्लोक में भगवन श्रीकृष्ण स्पष्ट करते है की प्राणी की उत्त्पति और विनाश का कारण परमात्मतत्व है, और परमात्मतत्व के मूल प्रकृति में ही यह सब कार्य होते है। अपितु यह सब कार्य स्वतः ही होते है, इसमें परमात्मतत्व का कर्ता भाव नहीं रहता।

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