श्लोक के सन्दर्भ मे:
देवी और देवता लोग कौन है ?
हमारे सत-शास्त्रः में, सृष्टि के समस्त प्राणी, प्रदार्थ को देव-देवी (दिव्यरूप) रूप में देखा जाता है। जल, वायु, पृथ्वी, ग्रह, व्रक्ष (नीम, पीपल, आम, तुलसी आदि) पशु, पक्षी, नदिया आदि सभी प्राणी, एवं प्रदार्थ दिव्यरूप में देखे और पूजे जाते है। कारण की, ये सभी सृष्टि चक्र को बनाय रखने में अपना-अपना योगदान करते हैं और मनुष्य का जीवन निर्वाह इन के सहयोग से ही होता है।
भावार्थ:
आगे ब्रह्माजी मनुष्य से कहते हैं कि तुम अपने मनुष्य धर्म का पालन करते हुए प्रकृति (संसार) के संरक्षण, वृद्धि और कल्याण हेतु उनकी सेवा करो और देवता लोग भी अपने धर्म का पालन करते हुए, जो भी सामग्री मनुष्य धर्म पालन हेतु आवश्यक है, वे तुमको प्रदान करते रहेंगे। इस प्रकार तुम एक दूसरे का सहयोग करते हुए तुम परम् कल्याण को प्राप्त होंगे।
जैसे वृक्ष, लता, आदि में स्वतः ही फल-फूल लगते हैं; परन्तु यदि मनुष्य उन्हें खाद और पानी दे और उनकी देखभाल करे तो उनमें फल-फूल विशेषता से लगते हैं। उसी प्रकार अनाज की खती करने पर प्रकृति मनुष्य के जीवन निर्वह के लिये अनाज प्रदान करती है। नदियों का जल न केवल मनुष्य के जीवन के लिये आवश्यक है, अपितु सभी प्रकार के प्राणी और वनस्पति के लिये आवश्यक है। अतः वनस्पति, नदियों का संरक्षण करना मनुष्य के लिये आवश्यक है।
धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, मनुष्य जीवन के चार पुरुषार्थ है। यह चार पुरुषार्थ को करना ही मनुष्य जीवन का उदेश्य है। उद्देश्य इसलिये है क्योंकि इन चार पुरुषार्थ को करने से ही मनुष्य का कल्याण है। धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, का अर्थ क्या है? यह पुरुषार्थ करने से मनुष्य का कल्याण किस प्रकार है? धर्म धर्म का अर्थ है कर्तव्य। श्रीमद […]
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