भावार्थ:
भगवान श्रीकृष्ण आगे कहते है की अगर मैं कामना, आसक्ति का त्याग करके कर्तव्यकर्म न करूँ तो साधारण मनुष्य मेरा ही अनुसरण करते हुये कामना, भोग, आसक्ति, आलस्य और प्रमाद के वश होकर नष्ट-भ्रष्ट हो जायेंगे। ऐसा होने पर सम्पूर्ण समाज में आसुरी संस्कार की व्रद्धि होगी और सम्पूर्ण समाज को नष्ट करने का उत्तरदायित्व मुझ पर होगा।
मनुष्य अपना अमूल्य जीवन नष्ट कर देगा और सृष्टि चक्र रूपी यज्ञ में अपने कर्तव्यकर्म की आहुति न देने के कारण संसार का कल्याण भी नहीं होगा और सृष्टि में भी बाधा डालेगी।
श्लोक के सन्दर्भ मे:
अध्याय १ श्लोक ४० एवं अध्याय १ श्लोक ४१ में अर्जुन ने कहा था कि ‘यदि मैं युद्ध करूँगा तो कुलका नाश हो जायगा। कुल का नाश होने का अर्थ है कुल के व्यस्क पुरुष मृत्यु को प्राप्त हो जायेगे। कुल के श्रेष्ठ पुरुष न रहने पर कुल के अन्य लोग धर्म पालन के लिये किसका अनुसरण करेंगे। अतः धर्म का नाश होगा और अधर्म की वृद्धि होगी।
इस प्रकार अर्जुनका भाव यह था कि युद्ध करनेसे अधर्म की वृद्धि होगी परन्तु यहाँ भगवान् उससे विपरीत बात कहते हैं कि युद्धरूप कर्तव्य-कर्म न करने से अधर्म की वृद्धि होगी। कारण की श्रेष्ठ पुरुष अगर अपने कर्तव्य का पालन नहीं करेंगे, तो उनके अपने जीवन काल में ही अन्य लोग अधर्मी हो जायेगे। इसके विपरीत अगर श्रेष्ठ पुरुष अपने कर्तव्य का पालन करते हुये मृत्यु को प्राप्त होते है तो वह इतिहास में कर्तव्यपरायण के लिये जाने जायेगे और लोग उनका अनुसरण करेंगे।
धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, मनुष्य जीवन के चार पुरुषार्थ है। यह चार पुरुषार्थ को करना ही मनुष्य जीवन का उदेश्य है। उद्देश्य इसलिये है क्योंकि इन चार पुरुषार्थ को करने से ही मनुष्य का कल्याण है। धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, का अर्थ क्या है? यह पुरुषार्थ करने से मनुष्य का कल्याण किस प्रकार है? धर्म धर्म का अर्थ है कर्तव्य। श्रीमद […]
Read MoreTo give feedback write to info@standupbharat.in
Copyright © standupbharat 2024 | Copyright © Bhagavad Geeta – Jan Kalyan Stotr 2024