भावार्थ:
आगे भगवान श्रीकृष्ण तत्वज्ञ महापरुष को सावधान करते है की वह कोई भी ऐसा कार्य (ज्ञान उपदेश आदि) न करे जिससे अज्ञानीजन के बुद्धि में किसी प्रकार का भ्र्म उत्पन न हो।
भगवान का आग्रह है की मनुष्य के लिये शास्त्र-विहित कर्तव्य-कर्म संसार के कल्याण के लिये अवश्य ही करने चाहिये। अज्ञानीजन का शास्त्र-विहित कर्तव्य-कर्म भले ही आसक्ति युक्त और फल प्राप्ति के लिये, होने के कारण उनको जीवन के बन्धन से तो मुक्त नहीं करता पर वह कार्य है तो संसार के कल्याण के लिये।
अतः तत्वज्ञ महापरुष अज्ञानी मनुष्य को शुभ कार्य करने से किसी भी प्रकार विचिलित न करे। और भगवान श्री कृष्ण तत्वज्ञ महापरुष को आज्ञा देते है कि वह भी शास्त्र-विहित कर्तव्य-कर्म को आसक्ति रहित एवं निष्कामभाव से करे, जिससे की अज्ञानी पुरषों को भी निष्कामभाव से कर्तव्य-कर्म करनेकी प्रेरणा मिलती रहे और वह जीवन के बन्धन से मुक्त हो।
श्लोक का परिपेक्ष्य:
अध्याय ३ श्लोक २० से अध्याय ३ श्लोक २६ तक के प्रकरण से यह सिद्ध होता है कि, मनुष्य को तत्व ज्ञान हो, चाहे नहीं हो, उसको समाज कल्याण के लिये मनुष्य धर्म का पालन अवश्य ही करना चाहिये। इस विषय की पुष्टि और स्पष्टता अध्याय ३ श्लोक २५ और अध्याय ३ श्लोक २६ से पूर्णतया हो जाती है।
योग में आरूढ़ साधक और शास्त्रों का अध्यन करने वाले विद्वानों को स्पष्टता से सावधान किया गया है की कृत-कृत्य अन्तःकरण का एक भाव है, शरीर, मन और बुद्धि की निष्क्रियता नहीं है।
योग में स्थित साधक में कामना, राग-द्वेष न होने से उसके स्वयं के लिये कुछ करने को नहीं है। और क्योकि प्रकृति और मनुष्य शरीर में हो रहे कार्य का कारण ब्रह्मा है, इसलिये योग में स्थित साधक को यह अहंकार भी नहीं होता की मैं कार्य को करता हूँ।
“ना करता हूँ और न स्वयं के लिये करना है” का अर्थ यह नहीं है कि शरीर, इन्द्रियाँ, मन और बुद्धि से कुछ करना ही नहीं है? इसका अर्थ है की मनुष्य (शरीर, इन्द्रियाँ, मन और बुद्धि) को लोक कल्याण के लिये; सृष्टि चक्र रूपी यज्ञ के लिये, आसक्ति रहित हो कर सभी प्राप्त कर्तव्य कर्म को तत्प्रता से करना है।
धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, मनुष्य जीवन के चार पुरुषार्थ है। यह चार पुरुषार्थ को करना ही मनुष्य जीवन का उदेश्य है। उद्देश्य इसलिये है क्योंकि इन चार पुरुषार्थ को करने से ही मनुष्य का कल्याण है। धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, का अर्थ क्या है? यह पुरुषार्थ करने से मनुष्य का कल्याण किस प्रकार है? धर्म धर्म का अर्थ है कर्तव्य। श्रीमद […]
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