भावार्थ:
अहंकार क्या है और किस कारण से है, इसका वर्णन अध्याय ३ श्लोक २७ में विस्तार से हुआ है। अतः जो महापुरुष शरीर से होने वाली क्रियाओं को और उनके कारण (मनुष्य प्रकृति और गुण) को ठीक-ठीक जानता है, वह शरीर और शरीर की क्रिया से सम्बन्ध नहीं जोड़ता।
श्लोक के सन्दर्भ मे:
इस श्लोक में अर्जुन को महाबाहो पद से सम्बोधित किया है। इस का अर्थ यह नहीं है कि सच्चा और वीर पुरुष वह ही है जो किसी युद्ध में शत्रुओं पर विजय प्राप्त करे। अपितु वह भी है जो निरन्तर मन में चल रहे युद्ध का अथक सामना करते हुये आसक्तियों के ऊपर पूर्ण विजय प्राप्त करे। कर्म के युद्धक्षेत्र में परिस्थितियों पर आधिपत्य स्थापित करते हुये समस्त दिशाओं से आने वाले आसक्तियों के बाणों के समक्ष आत्मसमर्पण न करते हुये जो कर्म करता है वही अपराजेय अमर वीर है।
इस का दूसरा अर्थ यह भी है की शक्ति रूप से जो गुण तुम अपना समझ रहे हो, वो वास्तविकता में प्रकृति का गुण है। अतः इस पर अहंकार मत कर।
धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, मनुष्य जीवन के चार पुरुषार्थ है। यह चार पुरुषार्थ को करना ही मनुष्य जीवन का उदेश्य है। उद्देश्य इसलिये है क्योंकि इन चार पुरुषार्थ को करने से ही मनुष्य का कल्याण है। धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, का अर्थ क्या है? यह पुरुषार्थ करने से मनुष्य का कल्याण किस प्रकार है? धर्म धर्म का अर्थ है कर्तव्य। श्रीमद […]
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