भावार्थ:
तत्व का विज्ञान, प्रकृति के गुणों का जो विज्ञान है उसके ज्ञाता होकर जो विद्वान् हुये है, ऐसे विद्वानों को सम्बोधित करते हुए भगवान श्रीकृष्ण उनको सावधान करते है कि वह उन अज्ञानी को विचिलित न करे जो समाज कल्याण (कर्तव्य पालन) में रत है। भले ही उनके द्वारा हो रहे कार्यों में उनको अहंकार है। अध्याय ३ श्लोक २६ में भी भगवान श्रीकृष्ण तत्व ज्ञानी महापुरष को सावधान करते है कि, वह कर्मों में आसक्त अज्ञानी को कर्म न करने के लिये विचलित न करे और उनकी समान स्वयं भी करे।
श्लोक के सन्दर्भ मे:
सत्व, रज, और तम – ये तीनों प्रकृतिजन्य गुण मनुष्य को बाँधने वाले हैं। (प्रकृति को जन्म देनेवाली) हैं। सत्वगुण सुख और ज्ञानकी आसक्तिसे, रजोगुण कर्मकी आसक्तिसे और तमोगुण प्रमाद, आलस्य तथा निद्रासे मनुष्यको बाँधता है।
जो मनुष्य प्रकृतिजन्य गुणों से अत्यन्त मोहित अर्थात बँधे हुए है; परन्तु जिनका शास्त्रों में, शास्त्र विहित शुभ कर्मों में तथा उन कर्मों के फलों में श्रद्धा-विश्वास है, ऐसे मनुष्य को इस श्लोक में अज्ञानी जन कहा गया है। अज्ञानी मनुष्य लौकिक और पारलौकिक भोगोंकी कामनाके कारण पदार्थों और कर्मों में आसक्त रहते हैं।
अज्ञानी मनुष्य शुभकर्म तो करते हैं, मनुष्य धर्म का पालन तो करते है, पर करते हैं लौकिक और पारलौकिक कामनााओं की पूर्ति के लिये। उनका उद्देश्य रहता है की वह पाप कर्म न करे।
भगवान श्रीकृष्ण विद्वानों को सावधान करते है कि वे सकाम भावपूर्वक शुभ-कर्मों में लगे हुए अज्ञानी मनुष्यों को विचलित न करे। अर्थात विद्वान् अपने वचन और क्रिया से ऐसा कोई संकेत या बात प्रकट न करें, जिससे उन सकाम मनुष्यों की शास्त्रविहित शुभ कर्मों में अश्रद्धा, अविश्वास या अरुचि पैदा हो जाय और वे उन कर्मों का त्याग कर दें; क्योंकि ऐसा करने से उनका वस्तुत स्थति से पतन हो जायगा।
श्लोक का परिपेक्ष्य:
भगवान श्रीकृष्ण ने इसी अध्याय ३ श्लोक २७ एवं अध्याय ३ श्लोक २८ श्लोकों में कहा है कि मनुष्य (शरीर, मन, बुद्धि) कर्मों का कर्ता न हो कर, मनुष्य की प्रकृति और गुण कारण है। परन्तु प्राय ज्ञानी मनुष्य यह मान लेता हैं कि मनुष्य को कोई कार्य ही नहीं करना है, क्योँकि सभी कार्य तो प्रकृति और गुणों के द्वारा हो रहे। इसलिये भगवान सावधान करते है कि मनुष्य की प्रथम प्राथमिकता कर्तव्य-कर्म को करना का है, फिर चाहे वह सकामभाव अथवा कार्य से सम्बन्ध मान कर, ही क्यों न किये गये हो।
इस श्लोक से भी यह स्पष्ट होता है की मनुष्य जीवन का एक मात्र उद्देश्य समाज-लोक कल्याण के लिये कार्य करना है और यह ही मनुष्य का धर्म है।
धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, मनुष्य जीवन के चार पुरुषार्थ है। यह चार पुरुषार्थ को करना ही मनुष्य जीवन का उदेश्य है। उद्देश्य इसलिये है क्योंकि इन चार पुरुषार्थ को करने से ही मनुष्य का कल्याण है। धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, का अर्थ क्या है? यह पुरुषार्थ करने से मनुष्य का कल्याण किस प्रकार है? धर्म धर्म का अर्थ है कर्तव्य। श्रीमद […]
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