श्रीमद भगवद गीता : ३३

प्राणी त्रिगुण वश कार्य करता है, कर्मों का निग्रह क्या करेगा?

 

सदृशं चेष्टते स्वस्याः प्रकृतेर्ज्ञानवानपि।

प्रकृतिं यान्ति भूतानि निग्रहः किं करिष्यति ।।३-३३।।

 

सम्पूर्ण प्राणी प्रकृति (त्रिगुण) के अनुसार चेष्टा करता है। ज्ञानी महापुरुष भी अपनी प्रकृतिके अनुसार चेष्टा करता है। फिर इसमें किसीका निग्रह क्या करेगा? ||३-३३||

 

भावार्थ:

जिन विद्वानों की आस्था ज्ञान योग और कर्म सन्यास में होती उनके लिये यह श्लोक कहा गया है। अर्जुन भी उसी श्रेणी मे है जो कर्मों से सन्यास लेना चाहते है।

पहले अध्याय ३ श्लोक २७ एवं अध्याय ३ श्लोक २८ और अब इस श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण पुनः कहते कि चाहे सधारण प्राणी हो या ज्ञानी महापरुष, उन सबकी सम्पूर्ण क्रियाएँ मनुष्य प्रकृति मनुष्य गुणों द्वारा ही होती है।

फिर ज्ञानी महापुरुषों का हठ पूर्वक कर्म सन्यास का प्रयास किस प्रकार सफल होगा? मनुष्य प्रकृति एवं गुण तो कर्म-सन्यासी से कर्म करा ही लेगे।

यहा गुण पद से सत्व, रजस और तम – इन तीनों गुण आ जाते है। हर मनुष्य में यह तीनों गुण मिश्रित एवं असमान्य रूप से स्थित होते है। इस मिश्रित गुण को मनुष्य की प्रवृति अथवा स्वभाव भी कहते है।

मनुष्य विमूढ़ता वश प्रकृति के सारे कार्यों को अपने शरीर, इन्द्रियाँ और बुद्धि द्वारा ही हुआ मानता है। मनुष्य का ऐसा मत है की उसके अविष्कार के द्वारा ही अनेक प्रकार के यन्त्र, तन्त्र, मकान आदि बनाय गये। उसका को सुखमय और सुरक्षित जीवन है उसका कारण वह स्वयं है।

इन्द्रियों का देखना सुनना आदि, बुद्धि का विचार करना, हाथ, पैर का चलना, सभी का कारण समिष्ट शक्ति, मनुष्य प्रकृति, एवं गुण है।

जब आखों का देखना, कानो का सुनना, श्वास का चलना, खाने का पचना आदि क्रियाओं में मनुष्य का कोई योगदान नहीं है तो मनुष्य की इन्द्रियाँ, कर्मेन्द्रियाँ और बुद्धि द्वारा होनी वाली क्रियाओं को अपनी मानने की हठ क्यों करता है?

PREVIOUS                                                                                                                                       NEXT

धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष

धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, मनुष्य जीवन के चार पुरुषार्थ है। यह चार पुरुषार्थ को करना ही मनुष्य जीवन का उदेश्य है। उद्देश्य इसलिये है क्योंकि इन चार पुरुषार्थ को करने से ही मनुष्य का कल्याण है। धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, का अर्थ क्या है? यह पुरुषार्थ करने से मनुष्य का कल्याण किस प्रकार है? धर्म धर्म का अर्थ है कर्तव्य। श्रीमद […]

Read More

अध्याय