श्रीमद भगवद गीता : ४०

कामना के निवास बुद्धि, आच्छादित हो मनुष्यको मोहित करता है।

 

इन्द्रियाणि मनो बुद्धिरस्याधिष्ठानमुच्यते।

एतैर्विमोहयत्येष ज्ञानमावृत्य देहिनम् ।।३-४०।।

 

इन्द्रियाँ, मन और बुद्धि इस कामना के निवास-स्थान कहे गये हैं। यह काम इन- (इन्द्रियाँ, मन और बुद्धि-) के द्वारा ज्ञानको आच्छादित करके देहाभिमानी मनुष्यको मोहित करता है।  ||३-४०||

 

भावार्थ:

अध्याय ३ श्लोक ३४ में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि इन्द्रिय के विषय में राग उत्पन्न होता है। राग से मन में कामना उत्पन्न होती है और कामना की पूर्ति के लिये बुद्धि कार्य शरीर द्वारा करती है। इसलिये इस श्लोक में इन्द्रियाँ, मन और बुद्धि को कामना का वास-स्थान कहा है। ये तीनो और शरीर ही क्रिया करने के साधन हैं। यदि इनमें कामना रहेगी तो मनुष्य कर्तव्य-कर्म कैसे करेगा?

मनुष्य में शरीर के प्रति अहंता, ममता और आसक्ति होने से मनुष्य को देहाभिमानी कहा गया है।

देहाभिमानी मनुष्य के इन्द्रियाँ, मन और बुद्धि में ही कामना का वास-स्थान सम्भव है। जो देहाभिमानी नहीं है उसमें कामना वास नहीं कर पाती।

कामना के कारण देहाभिमानी मनुष्य के विवेक पर आवरण पड़ जाता है। और उसको जो करना चाहिये वह नहीं करता और जो नहीं करना चाहिये, वह कर बैठता है। इस प्रकार कामना से मोहित हो मनुष्य मूढ़ता को प्राप्त होता है।

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